- उपायुक्त की अध्यक्षता में आजीविका संवर्धन पर बैठक, गुणवत्ता और ब्रांडिंग पर दिया गया ज़ोर
- कलात्मक हुनर को मिला सरकारी मान्यता, चार समितियों को सौंपे गए निबंधन प्रमाण पत्र
जेबी लाइव, रिपोर्टर
समाहरणालय सभागार में उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी की अध्यक्षता में आयोजित आजीविका संवर्धन बैठक में ग्रामीण क्षेत्रों की पारंपरिक कलाओं और कृषि आधारित उत्पादों को बाजार से जोड़ने पर व्यापक चर्चा हुई। उपायुक्त ने कहा कि मधु संग्रहण, मशरूम और काजू उत्पादन के साथ-साथ बांस, मिट्टी, जर्मन सिल्वर और डोकरा शिल्प जैसी कलाओं को यदि व्यवस्थित प्रशिक्षण और विपणन का अवसर मिले, तो यह ग्रामीण आजीविका को स्थायित्व प्रदान कर सकती हैं। उन्होंने निर्देश दिया कि आजीविका परियोजनाएं केवल सरकारी प्रदर्शन तक सीमित न रहें, बल्कि इनका उद्देश्य ग्रामीणों के जीवन में आर्थिक बदलाव लाना होना चाहिए।
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगी नई दिशा, उपायुक्त ने कहा – लक्ष्य है आत्मनिर्भरता
बैठक में उपायुक्त ने स्पष्ट किया कि जिला प्रशासन उन्हीं समूहों को सहायता देगा, जिनमें आत्मनिर्भर बनने की स्पष्ट क्षमता हो। उत्पादों की ब्रांडिंग, मानकीकरण और गुणवत्ता सुधार के लिए सरकारी मदद एक शुरुआत मात्र होगी। बाजार में टिकने के लिए उत्पादों में मौलिकता और उपभोक्ता विश्वास अनिवार्य है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि अगला पंद्रह दिन कार्रवाई की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो और प्रत्येक बिंदु पर जमीनी अमल की शुरुआत हो जाए। समूहों को एक रूप में संगठित कर काम करने की भी बात कही गई।
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सरकारी मदद से आगे बढ़ेगा ग्रामीण उत्पाद, लेकिन आत्मनिर्भरता होगी असली सफलता
इस अवसर पर उपायुक्त ने चार पारंपरिक कला-संस्कृति से जुड़ी समितियों को औपचारिक रूप से निबंधन प्रमाण पत्र प्रदान किए। इनमें शामिल हैं—मारंग बुरू औद्योगिक सहयोग समिति (मुसाबनी), पैटकर पेंटिंग शिल्पकार समिति (धालभूमगढ़), अंधारझोर वाद्ययंत्र शिल्पकार समिति (बोड़ाम) और डोकरा शिल्पकार समिति (मुसाबनी)। बैठक में उप विकास आयुक्त, उद्योग विभाग के महाप्रबंधक, नाबार्ड, जिला सहकारिता, कृषि, मत्स्य, उद्यान, पशुपालन पदाधिकारी और जेएसएलपीएस के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इन सभी ने आजीविका योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक प्रभावी बनाने पर सहमति जताई।