- सबूतों के अभाव में बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
जेबी लाइव, रिपोर्टर
मुंबई हाईकोर्ट ने 2006 के सिलसिलेवार ट्रेन धमाकों मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा है और इस आधार पर दोषियों को रिहा किया जाता है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि ये आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो इन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाए. गौरतलब है कि मकोका कोर्ट ने 2015 में इनमें से 5 को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने 2025 में इस फैसले को पलट दिया.
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2006 : 11 मिनट में 7 धमाके, हाईकोर्ट ने सबूतों को बताया असंतोषजनक
11 जुलाई 2006 को मुंबई की वेस्टर्न रेलवे लाइन की 7 लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास डिब्बों में 11 मिनट के भीतर सिलसिलेवार धमाके हुए थे. इन विस्फोटों में 189 लोगों की मौत हुई थी और 824 से अधिक लोग घायल हुए थे. धमाके खार, बांद्रा, बोरीवली, माहिम, मीरा-भायंदर, माटुंगा और जोगेश्वरी के पास हुए थे. हाईकोर्ट ने चार प्रमुख आधारों पर सजा को खारिज किया – सबूत और गवाह पर्याप्त नहीं थे, विस्फोटकों की ठीक से पहचान और संरक्षण नहीं हुआ, बमों की स्पष्टता नहीं थी, और आरोपियों के बयानों में जबरन लिए जाने के संकेत थे.
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19 साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ, परिजनों के सवालों के घेरे में जांच एजेंसियां
इस फैसले ने न्याय व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 19 साल की लंबी जांच और सुनवाई के बाद यदि दोषी सिद्ध नहीं हो पाए, तो यह न केवल पीड़ित परिवारों के लिए पीड़ादायक है, बल्कि देश की जांच एजेंसियों और कानून व्यवस्था पर भी सवालिया निशान है. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी आजम चीमा को साजिश का मास्टरमाइंड माना गया था, लेकिन उसके खिलाफ भी कोई निर्णायक प्रमाण नहीं पेश किए जा सके. अब पीड़ितों के परिजन पूछ रहे हैं – क्या 189 लोगों की मौत का कोई जवाबदेह नहीं होगा?