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New Delhi : 1993 फर्जी एनकाउंटर मामला : 32 साल बाद आया इंसाफ, पांच रिटायर्ड पुलिस अधिकारी दोषी करार

  • सीबीआई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, निर्दोषों की हत्या में शामिल अधिकारियों को हत्या, साजिश और सबूत मिटाने का दोषी

जेबी लाइव, रिपोर्टर

मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 1993 के तरनतारन फर्जी मुठभेड़ मामले में पंजाब पुलिस के पांच सेवानिवृत्त अधिकारियों को दोषी ठहराया है। इनमें तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह (जो बाद में एसएसपी बने), एएसआई दविंदर सिंह (बाद में डीएसपी), एएसआई गुलबर्ग सिंह, निरीक्षक सूबा सिंह और एएसआई रघबीर सिंह शामिल हैं। इन अधिकारियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302, 120B, 201 और 218 के तहत हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, सबूत नष्ट करने और रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का दोषी पाया गया है। मामला 27 जून 1993 को शुरू हुआ जब पुलिस ने रानी वल्लाह गांव से सात लोगों को अवैध रूप से हिरासत में लिया, जिनमें चार विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) भी शामिल थे। उन्हें झूठे मामलों में फंसाकर उनकी हत्या कर दी गई थी।

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तरनतारन फर्जी मुठभेड़: निर्दोषों को पुलिस ने बनाया शिकार, सीबीआई जांच से हुआ पर्दाफाश

सीबीआई की जांच में सामने आया कि 27 जून को एक सरकारी ठेकेदार के घर से SPO शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह, बलकार सिंह और दलजीत सिंह को हिरासत में लिया गया। 2 जुलाई 1993 को पुलिस ने तीन व्यक्तियों पर हथियारों के साथ फरार होने का झूठा मामला भी दर्ज किया। यह मामला पंजाब में उस दौर की पुलिस कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जब फर्जी एनकाउंटर को आम बना दिया गया था। दोषी पाए गए सभी पुलिस अधिकारियों को कोर्ट ने हिरासत में ले लिया है और उन्हें जल्द ही सजा सुनाई जाएगी। यह फैसला मानवाधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया की जीत के रूप में देखा जा रहा है।

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