- ईचागढ़ में तीन हाथियों की दर्दनाक मौत, प्रशासन, वन विभाग और कंपनियों की भूमिका सवालों के घेरे में
जेबी लाइव, रिपोर्टर
सरायकेला जिले के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में हाथियों की लगातार अप्राकृतिक मौतों ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हाल के दिनों में अंडा, हेवेन और तिल्ला गांव में तीन हाथियों की दर्दनाक मौत हुई—कोई कुएं में गिरकर, कोई बिजली के तारों से झुलसकर, तो कोई ज़हर देकर मारा गया। हेवेन गांव की घटना के बाद वन विभाग ने ग्रामीण रघुनाथ सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, लेकिन बाकी मामलों में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सवाल यह उठता है कि क्या वन्यजीव संरक्षण अब भी हमारी प्राथमिकता है या यह केवल कागज़ी घोषणाओं तक सीमित रह गया है?
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प्राकृतिक गलियारों पर हमला, हाथियों की राह में ‘विकास’ का अड़ंगा
हेवेन जंगल में आग और पेड़ों की कटाई की कहानी भयावह है। लावा गोल्ड माइंस के मजदूरों द्वारा कथित रूप से जंगल में आग लगाकर, बाद में पेड़ों को ‘सूखा’ घोषित कर काटा गया। इससे हाथियों का नैसर्गिक आवास पूरी तरह उजड़ गया। चांडिल डैम के निर्माण ने पहले ही एलिफैंट कॉरिडोर को बाधित कर दिया था, और अब बचे-खुचे जंगल भी तबाह हो चुके हैं। हाथी मजबूरी में मानव बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव तेजी से बढ़ रहा है।
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श्रमिकों का शोषण और पर्यावरणीय लापरवाही बनी हाथियों की मौत की वजह
लावा गोल्ड माइंस की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पर्यावरणीय मंजूरी के बिना संचालित होती इस व्यवस्था में स्थानीय ग्रामीणों को न्यूनतम मज़दूरी पर वर्षों से काम में लगाया जा रहा है। विस्थापित और अशिक्षित ग्रामीण इस बात को ही नहीं समझ पाते कि असली समस्या क्या है। भ्रमित होकर वे ऐसे कदम उठा लेते हैं जो अंततः जंगल और वन्यजीवों के लिए घातक साबित होते हैं। प्रशासन की चुप्पी और वन विभाग की निष्क्रियता इस संकट को और गहरा बना रही है।
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प्रकृति के बिना विकास अधूरा, क्या हम इतिहास से कुछ सीखेंगे?
अब सवाल यह है कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं? क्या विकास का मतलब केवल खनन, निर्माण और जंगलों का सफाया है? क्या यह वही रास्ता नहीं है जो अतीत में कई सभ्यताओं के विनाश का कारण बना? यदि हम अब भी नहीं चेते, तो न तो हाथी बचेंगे और न ही जंगल। जरूरत है पर्यावरण-संवेदी विकास की सोच की, जहां प्रकृति और प्रगति साथ चलें। शिक्षा, नीति और समझदारी का यही सही उपयोग होगा।